मुन्ना ने आधे घंटे तक विश्राम किया। फिर प्रणाम लेकर बुआ को पीछे लगाकर बाग़ीचे चली।
बुआ का दो ही रोज़ की कवायद में इतना बुरा हाल हुआ कि सिर पर जैसे मनों का बोझ लद गया हो; जैसे गंदे पनाले से नहलायी गई हों। रिश्ते का गौरव कहीं गायब हो गया।
मौसी का पहले ही अपमान हो चुका था, आज्ञा मिल चुकी थी कि जबान खोलने पर मठा डालकर सिर घुटाकर गधे पर चढ़ाकर निकाल दी जाएगी और साथ-साथ जीवन-चरित जनता को सुनाया जाता रहेगा; वह कैसी थीं; यह मालूम हो चुका है।
अगर खामोश रहीं तो समझ में आ जाएगा कि अपमान उनका नहीं, उनके दुश्मन का हुआ है।
बुआ मुन्ना के साथ कोठी से उतरकर बागीचे गईं। धूप प्रखर हो गई है, फिर भी सुहानी है।
तरह-तरह की चिड़ियाँ चहक रही हैं। रंग-बिरंगी सुरीली आवाजवाली; भँवरे, सुए, रुकमिनें, बुलबुल, पीली गलारें, कोयलें, पपीहे, कौए। स्वच्छ जलवाले विशाल सरोवर पर राजहंस तैरते हुए।
कहीं-कहीं बगले ताक लगाए बैठे हुए।
गिलहरियाँ टहनी से टहनी पर उछलती हुई। धीमी-धीमी हवा चल रही है जैसे साक्षात् कविता बह रही हो।
सरोवर पर हल्की-हल्की लहरियाँ उठती हुई उस किनारे से इस किनारे आ रही हैं।
चारों ओर विशाल उद्यान 13-14 हाय की ऊँची चारदीवार से घिरा हुआ। सरोवर और चारदीवार के किनारे नारियल के पेड़।
बीच में, अलग-अलग, नींबू, नारंगी, संतरे, सुपारी, अनानास, लीची, आम, जामुन, गुलाब जामुन, कटहल, बड़हर, बादाम, हड़बहेड़, आँवले, अनार, शरीफे, कितने फूल हुए, शहतूत, फालसे, अमरूद आदि फलों के पेड़ एक-एक घेरे में लगे हुए।
कितने फूले हुए, कितने पकते हुए, कितनों में बौर, कितने ख़ाली। एक तरफ फूलों का बागीचा उजड़ा हुआ क्योंकि अब रनवास यहाँ नहीं। कहीं जंगली पेड़ों के झाड़।
बीच-बीच बेला, जुही, गुलाब, गंधराज, नेवाड़ी, चमेली, कुंद आदि उगे हुए जीने का व्यर्थ प्रयत्न करते हुए आज भी फूलों के अर्ध्य दे रहे हैं। पक्की सुथरी राहों पर वर्षा की काई जमी हुई है।
कटीले झाड़ उग रहे हैं। एक तरफ चारदीवार में दरवाज़ा है। इस तरफ से भी ताला लगा है, उस तरफ से भी। इस तरफ की ताली जमादार के पास है, उस तरफ की माली के पास।